- याज्ञवल्क्य (ईसा से दो शताब्दी पूर्व) हुऐ थे। उन्होने यजुर्वेद पर काम किया था। इसलिये यह कहा सकता है कि अपने देश ईसा के पूर्व ही मालुम था कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है। यूरोप में इस तरह से सोचना तो 14वीं शताब्दी में शुरु हुआ।
- आर्यभट्ट (प्रथम) (४७६-५५०) ने आर्य भटीय नामक ग्रन्थ की रचना की। इसके चार खंड हैं – गीतिकापाद, गणितपाद, काल क्रियापाद, और गोलपाद। गोलपाद खगोलशास्त्र (ज्योतिष) से सम्बन्धित है और इसमें ५० श्लोक हैं। इसके नवें और दसवें श्लोक में यह समझाया गया है कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है।
- भास्कराचार्य ( १११४-११८५) ने सिद्धान्त शिरोमणी नामक पुस्तक चार भागों में लिखी है – पाटी गणिताध्याय या लीलावती (Arithmetic), बीजागणिताध्याय (Algebra), ग्रह गणिताध्याय (Astronomy), और गोलाध्याय। इसमें प्रथम दो भाग स्वतंत्र ग्रन्थ हैं और अन्तिम दो सिद्धांत शिरोमणी के नाम से जाने जाते हैं। सिद्धांत शिरोमणी में पृथ्वी के सूरज के चारो तरफ घूमने के सिद्धान्त को और आगे बढ़ाया गया है।
गुरुवार, 17 नवंबर 2011
प्राचीन भारत में अन्य प्रसिद्ध खगोलशास्त्री
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